Thursday, August 19, 2010

मंदिरों में दिया money तो कभी line न बनी

मंदिरों का देश भारत वर्ष, आस्था का देश भारत वर्ष, ज्ञान का देश भारत वर्ष, त्याग का देश भारत वर्ष, संस्कृति का देश भारत वर्ष, और प्यार का देश भारत वर्ष, इस व्यंग को यहीं समाप्त करते हैं ऐसे और भी चुटकुले में आप को सुनाता रहूँगा और आते हैं एक और मुद्दे कि बात पे


मंदिरों में दिया money तो कभी line न बनी


ये कहना है इस देश के लाखों अमीरों का के -
"भगवन के दर्शन को तरसे नैना और Line से बचना हो तो Paisa देना".


मंदिरों के पुजारिओं ने भगवन के दर्शन पे भी पावंदी लगा दी उनके हाथ में जरा भगवन के देखभाल की डोर क्या आई उनहोने तो अधिकार ही समझ लिया है अपना ऊपर वाले पे.


बचपन से सुना है कि उस के दरबार में कोई छोटा बड़ा नहीं होता कोई नीच उंच नहीं होता वहां दुनिया के भेदभाव नहीं चलते, वो सब के लिए एक ही है. पर बड़े होने पे ये सवाल आया के बचपन से हमें क्यों बहकाया 


अगर आप नेता हैं या पूँजी पति है या कोई Star हैं भले ही वो कम कपड़ों में नाचने वाली मल्लिका या राखी क्यों न हों पैसा देते हैं तो V.I.P. पर्ची कटाइये वर्ना Line लगी है पीछे जाइये. 


यही द्रश्य हो चुका है भारत वर्ष के विभिन् महान मंदिरों का अगर आप को जल्दी दर्शन करने हैं तो पर्ची कटती है बाबू जेब में पैसे नहीं तो लग जाओ लाइन में भगवान तो हमारे अंडर में हैं पैसे दोगे तो लाइन रोक के दर्शन वर्ना तो ऊपर वाला जाने ( न वो भी नहीं जनता उसी के अंडर में तो पर्ची कटती है). 


और बिना पर्ची के फायदा भी कुछ नहीं है अंदर जाओगे ७ ८ घंटे कि लाइन के बाद और बहार आके कहोगे के कौन से जो बीच में थे वो थे राम में तो देख ही नहीं पाया धक्का इतना था के चलो..... 


और अगर उस समय कोई नेता, अभिनेता, विक्रेता, या ऐसा जो कोई पैसे देता आ जाता है 
तो समझो भगवन से मिलने का आप का समय बड़ा जाता है 
जब तक वो पूरी पूजा अर्चना न कर ले पूरी तरह से भगवन को मन में न धार ले 
और आशीर्वाद से अपना पाक दामन न भर ले बहार नहीं आता है 


और आप पे पड़ रही धूप और लगती हुई भूख को तपस्या कह के दर्शाया जाता है 
और आप को अच्छे भाग्त का दर्जा दिलवाया जाता है मंदिरों में ऐसे ही मन बहलाया जाता है 


इस का एक कारण मंदिरों में चदावे कि राशि का अधिक होना है बड़ी हस्तियां जब देवी-देवता के दर्शन के लिए जाती हैं तो वे लाखों में चढ़ावा चढ़ाती हैं। ऐसे में पुजारी और मंदिर के भाग्य खुल जाते हैं। कई पुजारी तो ललचायी नजरों से ऐसे दानकर्ता का इंतजार करते हैं? यानी भक्त अमीर या वीआईपी हो और दान की राशि अधिक हो, तो गरीब भक्तों की ओर पुजारी क्यों देखे? आप क्या दोगे २  5 10  हजारों से कम है भैया 


Money Money Money Jai Jai Money!! 


"मेरा मुद्दा तो मंदिरों में भी चलते हुए माया मोह से दूर रहने के लिए दिए गए भाषणों की आड़ में ली गई माया को दर्शाना था सो मैने कर दिया"


बाकि आप सोचो बुद्धिमान हों.





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